इति गुह्यतमं(म्) शास्त्रम्, इदमुक्तं(म्)मयानघ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्, कृतकृत्यश्च भारत॥15.20॥
Thus, Ο sinless one, has this most profound teaching been imparted by Me. By knowing it a man becomes wise, Ο Bhārata, and fulfills all his duties.
भावार्थ : हे निष्पाप अर्जुन! इस प्रकार यह अति रहस्ययुक्त गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्त्व से जानकर मनुष्य ज्ञानवान और कृतार्थ हो जाता है॥20॥
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासु उपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां(य्ँ) योगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे पुरुषोत्तमयोगो नाम पञ्चदशोऽध्याय:॥