यस्मात्क्षरमतीतोऽहम्, अक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च, प्रथितः(फ्) पुरुषोत्तमः॥15.18॥
As I surpass the Perishable and as I am higher even than the Imperishable, I am extolled in the world and in the Vedas as the Supreme Self.
भावार्थ : क्योंकि मैं नाशवान जड़वर्ग- क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिए लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ॥18॥