अनन्याश्चिन्तयन्तो मां(य्ँ), ये जनाः(फ्) पर्युपासते।
तेषां(न्) नित्याभियुक्तानां(य्ँ), योगक्षेमं(व्ँ) वहाम्यहम्॥9.22॥
There are those who always think of Me and engage in exclusive devotion to Me. To them, whose minds are always absorbed in Me, I provide what they lack and preserve what they already possess.
किन्तु जो लोग सदैव मेरे बारे में सोचते हैं और मेरी अनन्य भक्ति में लीन रहते हैं एवं जिनका मन सदैव मुझमें तल्लीन रहता है, उनकी जो आवश्यकताएँ होती हैं उन्हें मैं पूरा करता हूँ और जो कुछ उनके स्वामित्व में होता है, उसकी रक्षा करता हूँ।