Edit This Entry

abhi7605 wrote this blog titled "gita chapter 12(20)"

ये तु धर्म्यामृतमिदं(य्ँ), यथोक्तं(म्) पर्युपासते।

श्रद्दधाना मत्परमा, भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः॥12.20

Who, with faith having Me as their goal follow this immortal and nectar-like Dharma as declared above, such devotees are most dear to Me.

भावार्थ : परन्तु जो श्रद्धायुक्त (वेद, शास्त्र, महात्मा और गुरुजनों के तथा परमेश्वर के वचनों में प्रत्यक्ष के सदृश विश्वास का नाम 'श्रद्धा' है) पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेमभाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासु उपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां(य्ँ) योगशास्त्रे

श्रीकृष्णार्जुनसंवादे भक्तियोगो नाम द्वादशोऽध्यायः॥

 

 

 


Be the first to write your comment!


Current rating:

Comments