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abhi7605 wrote this blog titled "gita chapter 12(10)"

अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि, मत्कर्मपरमो भव।

मदर्थमपि कर्माणि, कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि॥12.10

Even if you are not capable of practice, do work for My sake; By doing work for my sake also, you shall attain perfection.

 

भावार्थ : यदि तू उपर्युक्त अभ्यास में भी असमर्थ है, तो केवल मेरे लिए कर्म करने के ही परायण (स्वार्थ को त्यागकर तथा परमेश्वर को ही परम आश्रय और परम गति समझकर, निष्काम प्रेमभाव से सती-शिरोमणि, पतिव्रता स्त्री की भाँति मन, वाणी और शरीर द्वारा परमेश्वर के ही लिए यज्ञ, दान और तपादि सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों के करने का नाम 'भगवदर्थ कर्म करने के परायण होना' है) हो जा। इस प्रकार मेरे निमित्त कर्मों को करता हुआ भी मेरी प्राप्ति रूप सिद्धि को ही प्राप्त होगा


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